Great History Of TATA Group – Hindi

आज से 150 साल पहले एक छोटे से कॉटन

ट्रेडर ने भारत को बदलने का सपना देखा इस

बात से बिल्कुल अनजान कि एक दिन उनका यही

सपना एक ऐसे बिजनेस एंपायर को जन्म देगा

जो ना केवल भारत को बदलेगा बल्कि करोड़ों

भारतीयों के दिल को भी जीत लेगा यह कहानी

है टाटा ग्रुप की इंस्पायर होने के लिए

तैयार हो जाइए ईयर 1839 जमशेद जी टाटा का

जन्म होता है

बिजनेस करने लगते हैं अगले 10 सालों में

कई मुश्किलों के बावजूद उनका बिजनेस काफी

बड़ा बन जाता है लेकिन जमशेद जी केवल कॉटन

को ट्रेड करके सेटिस्फाइड नहीं थे वो खुद

कॉटन से क्लोथ्स मैन्युफैक्चर करना चाहते

थे इसीलिए

के लिए एक इनोवेटिव सॉल्यूशन निकाला

उन्होंने वर्कर्स के लिए प्रोविडेंट फंड

की स्कीम लॉन्च की मतलब अब वर्कर्स को

रिटायरमेंट के बाद पेंशन मिलने वाली थी

दूसरा उन्होंने वर्कर्स का मेडिकल

इंश्योरेंस करवाया और फाइनली फैमिली डेज

और स्पोर्ट्स डेज जैसे इवेंट्स ऑर्गेनाइज

करवाए इन्हीं इवेंट्स में अच्छा परफॉर्म

करने वाले वर्कर्स को सबके सामने रिवॉर्ड

भी किया जाता था इन सभी इनिशिएटिव से

वर्कर्स काफी वैल्यूड फील करने लगे जिससे

उनकी अटेंडेंस और परफॉर्मेंस दोनों काफी

इंप्रूव हुई इनमें से कई स्कीम्स इतनी

फ्यूचरिस्टिक थी कि पूरी दुनिया में

इन्हें तब तक किसी ने इंप्लीमेंट नहीं

किया था 1880 में जमशेद जी ने देखा कि

इंडिया में इंडिपेंडेंस की डिमांड बढ़ती

जा रही है जमशेद जी का मानना था कि इंडिया

को इंडिपेंडेंट होने के लिए और

इंडिपेंडेंस को सस्टेन करने के लिए

इकोनॉमिकली सेल्फ सफिशिएंट बनना पड़ेगा और

सभी एसेंशियल प्रोडक्ट्स को इंडिया में ही

बनाना होगा इसीलिए उन्होंने अलग-अलग

एरियाज में और भी इंडियन बिजनेसेस बिल्ड

करना चालू कर दिए उन्होंने सबसे पहले

पंचगनी के पहाड़ों में स्ट्रॉबेरी

फार्मिंग की शुरुआत की जिसका इंपैक्ट यह

हुआ कि आज भी पंचगनी स्ट्रॉबेरी फार्मिंग

और जैम फैक्ट्रीज के लिए जाना जाता है

जमशेद जी ने यह भी ऑब्जर्व किया कि

बैंगलोर और मैसौर का वेदर फ्रांस जैसा है

इसीलिए वह फ्रांस में ब्रीड किए जाने वाले

सिल्क वर्म्स को इंडिया ले आए उन्होंने

बेंगलोर और मैसौर में जमीनें खरीदी टाटा

सिल्क फार्म ऑर्गेनाइजेशन की शुरुआत की और

लोकल फार्मर्स से सिल्क वर्म ब्रीडिंग

करवाई उनके इसी इनिशिएटिव से इंडिया को

मैसोर सिल्क और बैंगलोर मैसूर सिल्क साड़ी

जैसे पॉपुलर प्रोडक्ट्स मिले जमशेद जी

अपने होमटाउन बॉम्बे को बहु बहुत पसंद

करते थे और जानते थे कि शहर की डेवलपमेंट

के लिए वहां एक वर्ल्ड क्लास होटल होना

बहुत जरूरी है इसीलिए उन्होंने

18981 3 में होटल को पहली बार पब्लिक के

लिए ओपन किया गया और ये पूरे बॉम्बे की

पहली बिल्डिंग बनी जिसमें लाइट्स

इलेक्ट्रिसिटी से जलती थी जमशेद जी ने ऐसे

से और भी कई इनिशिएटिव लिए लेकिन उनका

सबसे इंपैक्टफुल इनिशिएटिव था स्टील का

बिजनेस स्टार्ट करना इंडिया में

कंस्ट्रक्शन रेलवेज और मैन्यूफैक्चरिंग

जैसी हर इंडस्ट्री को डेवलप करने के लिए

स्टील की जरूरत थी इसीलिए उनका सपना था

इंडिया में ही एक स्टील प्लांट खोलना

उन्होंने अपनी लाइफ के 17 साल इंडिया में

जगह-जगह हाई क्वालिटी आयरन ओर ढूंढने में

लगा दिए क्योंकि स्टील बनाने के लिए आयरन

सबसे इंपॉर्टेंट रॉ मटेरियल होता है लेकिन

सैडली जमशेद जी को लगातार फेलियर का सामना

करना पड़ा फिर अल्टीमेटली 1890 9 में

उन्हें बंगाल प्रोविंस में रिच आयरन ओर

रिजर्व्स मिल गए जिसके बाद उन्होंने तुरंत

आयरन ओर माइनिंग और एक स्टील प्लांट सेटअप

करना स्टार्ट कर दिया लेकिन अनफॉर्चूनेटली

जमशेद जी खुद अपनी आंखों से इंडिया में

स्टील बनते नहीं देख पाए क्योंकि 1904 में

65 की एज में उन्होंने अपनी आखिरी सासे ली

जमशेद जी का विजन और उनके ड्रीम्स इतने

ग्रैंड थे कि उनके जीते जी उन सबका पूरा

होना पॉसिबल नहीं था इसीलिए उनके बाकी सभी

ड्रीम्स को पूरा करने की रिस्पांसिबिलिटी

ली उनके बेटे दोराब जीी टाटा ने जमशेद जी

का मानना था कि इंडिया साइंटिफिक रिसर्च

और एजुकेशन में वेस्टर्न कंट्रीज से बहुत

पीछे है व इंडिया में एक ऐसा इंस्टीट्यूशन

एस्टेब्लिश करना चाहते थे जो यहां वर्ल्ड

क्लास रिसर्चस और साइंटिस्ट्स प्रोड्यूस

करें इसीलिए दोराबजी टाटा ने मैसौर के

महाराजा की मदद ली और 1909 में बैंगलोर

में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंसेस को

एस्टेब्लिश किया नोबल लॉरिए सीवी रमन

आईएससी के फर्स्ट डायरेक्टर बने आगे चलके

आईआईएससी ने इंडिया के फर्स्ट सुपर

कंप्यूटर परम और इंडिया के फर्स्ट

इंडिजिनियस एयर एयरक्राफ्ट द हंसा के

डेवलपमेंट में इंपॉर्टेंट कंट्रीब्यूशंस

किए जिस तरह आईआईएससी ने ऐसे वर्ल्ड क्लास

साइंटिस्ट और रिसर्चस को बनाया जिन्होंने

इंडिया को बदला उसी तरह इंडिया को आज ऐसे

बिजनेस लीडर्स चाहिए जो बिजनेसेस बिल्ड

करके देश की इकॉनमी को नेक्स्ट लेवल पे ले

जा सके और इन्हीं बिजनेस लीडर्स को बनाने

के लिए इंडिया में रिसेंटली एक इनोवेटिव

बिजनेस स्कूल खुला है एक ऐसा बिजनेस स्कूल

जहां स्टूडेंट्स को ऐसे स एक्सोस और

बिजनेस लीडर्स पढ़ाएंगे जिन्होंने खुद u

और

म्रैमास्टर बिजनेस बनाया है मैं बात कर

रहा हूं स्केलर स्कूल ऑफ बिजनेस के 18 मंथ

के पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम इन मैनेजमेंट

एंड टेक की यहां स्टूडेंट्स को ऐसे रियल

वर्ल्ड प्रोजेक्ट्स में काम करना होगा जो

खुद रियल कंपनीज से सोर्स किए जाएंगे अपना

खुद का बिजनेस बिल्ड करना यहां करिकुलम का

पार्ट होगा प्लस अपने बिजनेस को वीसीज के

सामने पिच करके फंड रेजिंग अपॉर्चुनिटी भी

मिलेगी स्केलर पिछले 7त सालों से एजुकेशन

इंडस्ट्री में है और इसीलिए उनके पास

ऑलरेडी 1200 से ज्यादा प्लेसमेंट

पार्टनर्स हैं ये ऐसी चीज है जो कोई और

बिजनेस स्कू अभी ऑफर नहीं कर रहा आपको इन

पार्टनर्स के साथ लीडरशिप पोजीशंस पे

प्लेस होने की अपॉर्चुनिटी मिलेगी और थ्री

मंथ्स की मैंडेटरी इंटर्नशिप तो है ही

स्केलर ने अपने ऑनलाइन प्रोग्राम्स में 96

पर प्लेसमेंट रेट अचीव किया है और मीडियन

सीटीसी 25 लाख का है करेंटली स्केलर स्कूल

ऑफ बिजनेस अर्ली सितंबर में स्टार्ट होने

वाले अपने फाउंडिंग कोहाट के लिए केवल 75

स्टूडेंट्स को हैंड पिक करने वाले हैं

बेस्ट पार्ट इज कि आपको अभी अप्लाई करने

पर अप टू 100% की स्कॉलरशिप भी मिल सकती

है तो अभी डिस्क्रिप्शन या कमेंट सेक्शन

में दिए हुए लिंक से स्केलर ऑफ स्कूल ऑफ

बिजनेस के लिए अप्लाई करिए अब कहानी पे

वापस आते हैं एजुकेशन के अलावा जमशेद जी

ने इलेक्ट्रिसिटी जनरेट करने के लिए एक

हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट का भी सपना देखा

था इस प्रोजेक्ट में गोवा महाराष्ट्र

बॉर्डर में पड़ने वाले दूध सागर फॉल्स का

यूज करके पावर जनरेशन किया जाना था दोराब

जी ने 7000 वर्कर्स को इवॉल्व किया और

आर्टिफिशियल लेक्स डम्स और चैनल्स बनवाए

1911 में प्लांट रेडी हुआ और पावर जनरेशन

स्टार्ट हुआ मुंबई की कई मिल्स और

बिजनेसेस को इसी पावर प्लांट से पावर

मिलना चालू हो गई और आज इसी कंपनी को हम

टाटा पावर के नाम से जानते हैं फाइनली

जमशेद जी ने जो स्टील प्लांट का काम

स्टार्ट किया था उसे पूरा करने की

रिस्पांसिबिलिटी भी दोराब जी टाटा ने ली

1907 में उन्होंने एक लिमिटेड कंपनी

इस्टैब्लिशमेंट

में करीब 8000 लोगों ने इसमें इन्वेस्ट

किया कंपनी का नाम टाटा स्टील और आयरन

कंपनी यानी टेस्को रखा गया और फाइनली 1912

में टिस्को से पहला स्टील प्रोड्यूस होके

निकला इसके 2 साल बाद ही 1914 में वर्ल्ड

वॉर व चालू हो गई और ब्रिटेन की स्टील

डिमांड एकदम से शॉट अप हो गई उन्हें

टैंक्स ट्रक्स रेलवे इन सबके लिए स्टील

चाहिए था टेस्को के प्लान ने दिन रात काम

किया और इस डिमांड को पूरा किया वॉर के

खत्म होने के बाद उस समय के वाइस रॉय ने

टेस्को के कंट्रीब्यूशन को एक्नॉलेज किया

और जिस टाउन में टिस्को का प्लान था उस

टाउन का नाम जमशेद जी के नाम के ऊपर

जमशेदपुर रख दिया और रेलवे स्टेशन का नाम

टाटा नगर रख दिया दोराबजी की लीडरशिप में

टाटा ग्रुप का बिजनेस कई गुना बढ़ चुका था

1932 में दोराबजी टाटा की डेथ हो गई और

जाने से पहले उन्होंने टा ग्रुप को स्टील

पावर कंज्यूमर प्रोडक्ट्स बैंकिंग और

इंश्योरेंस जैसे बिजनेसेस में डायवर्सिफाई

कर दिया था दोराबजी टाटा के बाद 1938 में

टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने फैमिली के एक

यंग मेंबर जेआरडी टाटा जेआरडी टाटा ने

1925 में ही बिजनेस जॉइन कर लिया था और

टेस्को के प्लांट में काम सीख रहे थे वह

हमेशा से एविएशन में काफी इंटरेस्टेड थे

इसीलिए 1932 में उन्होंने टा एविएशन

सर्विसेस की शुरुआत की ये एयरलाइन

पैसेंजर्स और कार्गो ट्रांसपोर्ट सर्विसेस

प्रोवाइड करने वाली इंडिया की पहली

एयरलाइन बनी इसकी पहली फ्लाइट खुद जेआरडी

टाटा ने उड़ाई थी जिसके बाद वो इंडिया के

फर्स्ट एवर कमर्शियल पायलट बन गए थे

चेयरमैन बनने के बाद जेआरडी टाटा ने देखा

कि इंडिया को सोडा ऐश और कस्टिक सोडा जैसे

एसेंशियल केमिकल्स बाहर से इंपोर्ट करने

पड़ते हैं ये ऐसे केमिकल्स थे जो ग्लास

टेक्सटाइल्स सोप्स और डिटर्जेंट जैसे

एसेंशियल प्रोडक्ट्स बनाने के लिए काफी

इंपॉर्टेंट थे वो चाहते थे कि इन केमिकल्स

को इंडिया में ही प्रोड्यूस किया जाए

इसीलिए 1939 में उन्होंने गुजरात के

मीठापुर टाउन में एक केमिकल प्लांट बिल्ड

किया और ऐसे ही शुरुआत हुई टाटा केमिकल्स

की वही टाटा केमिकल्स जो आज टाटा सॉल्ट को

भी मैन्युफैक्चर करता है केमिकल्स बिजनेस

अच्छा चलने लगा लेकिन जेआरडी का ड्रीम अभी

भी एयरलाइन बिजनेस को ग्रो करने का था

वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान ब्रिटिश गवर्नमेंट

Indian industrialist Jamsetji Nusserwanji Tata (1839 – 1904), founder of Indian multinational corporation the Tata Group, circa 1890. (Photo by Henry Guttmann/Hulton Archive/Getty Images)

ने सभी प्लेंस को सीज कर लिया जिस कारण

टाटा एविएशन सर्विसेस रातों-रात बंद हो गई

लेकिन लेन जैसे ही वॉर खत्म हुई वैसे ही

जेआरडी ने वापस एयरलाइन बिजनेस में एंट्री

करने का फैसला किया और इस तरह 1946 में

शुरुआत हुई एयर इंडिया की एयर इंडिया की

क्रू को उनकी वर्म और टेंटवर्क्स

और इन फ्लाइट एंटरटेनमेंट सब कुछ टॉप

क्लास था इवन इनका मैस्कॉट एक महाराजा था

जो एयरलाइन की इंडियन हॉस्पिटैलिटी और

रॉयल स्टैंडर्ड्स को दर्शाता था साथ ही

साथ एयर इंडिया हमेशा टाइम शेड्यूल के

हिसाब से चलती थी इन सब के कारण ना केवल

इंडिया में बल्कि इंटरनेशनली भी एयर

इंडिया को वन ऑफ द बेस्ट एयरलाइन के तौर

पे जाना जाता था एयर इंडिया को जेआरडी

अपने चाइल्ड की तरह ग्रो कर रहे थे लेकिन

फिर कुछ ऐसा हुआ जिसने इसी एयर इंडिया को

उनसे एक झटके में छीन लिया इंडिपेंडेंस के

बाद इंडियन गवर्नमेंट ने सोशलिस्ट

इकोनॉमिक मॉडल को अपनाया था जिसका मानना

था कि देश की इंपॉर्टेंट इंडस्ट्रीज जैसे

ट्रांसपोर्टेशन गवर्नमेंट के कंट्रोल में

होनी चाहिए ताकि ये इंडस्ट्रीज प्रॉफिट से

ज्यादा पब्लिक की सर्विस पे फोकस करें और

इसीलिए 1953 में एयर इंडिया को नेशनल लाज

यानी गवर्नमेंट के कंट्रोल में ले लिया

गया नेशनलाइजेशन के बाद एयर इंडिया का एक

ट्रैजिक डिक्लाइन चालू हो गया सर्विस

पंक्चुअलिटी और सेफ्टी नेगेटिवली इंपैक्ट

हुई जिससे अल्टीमेटली एयर इंडिया ने अपना

एक वर्ल्ड क्लास एयरलाइन का स्टेटस खो

दिया लेकिन एयर इंडिया के सेटबैक के बाद

भी जेआरडी टाटा ने टाटा ग्रुप को ग्रो

करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने

देखा कि इंडिपेंडेंस के बाद भी देश में

कोई भी इंडियन कॉस्मेटिक्स ब्रांड नहीं है

इसीलिए उन्होंने लैक मेंे की शुरुआत की

लैक मेंे एक फ्रेंच वर्ड है जिसका मतलब

हिंदी में लक्ष्मी होता है जेआरडी ने

डेलिबरेशन इस ब्रांड को एक इंडियन नाम

नहीं दिया उन्हें पता था कि इंडियन वुमेन

फॉरेन ब्रांड से ऑबसेस्ड थी और फॉरेन

ब्रांड्स को ही हाई क्वालिटी मानती थी

इसीलिए लैक मेंे नाम देकर उन्होंने इस

कॉस्मेटिक्स ब्रांड को इंटरनेशनल लेवल की

एस्पिरेशनल वैल्यू दी लेकिन रियलिटी में

लैक मेंे का मतलब अभी भी इंडिया से डीप

कनेक्टेड था इसके अलावा जेआरडी ने

जमशेदपुर में एक रेलवे इंजंस बनाने वाली

फैक्ट्री को खरीद लिया और शुरुआत की टा

लोकोमोटिव एंड इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड

की जिसे बाद में लको कर दिया गया इनिशियली

लको केवल रेलवेज के लिए स्टीम इंजंस बनाती

थी लेकिन जेआरडी ने जल्द ही ट्रक

मैन्युफैक्चरिंग में एक्सपें कर दिया

उन्होंने

वक्त में हेल्प की 1962 की इंडो चाइना वॉर

और 1965 की इंडो पार्क वॉर के दौरान

उन्होंने गवर्नमेंट को हर तरह के सपोर्ट

का अश्यूमने

की मैन्युफैक्चरिंग में हेल्प कर सकें

उन्होंने अपने एयर इंडिया का एक्सपीरियंस

यूज किया और इंडियन एयरफोर्स के लिए 10

ईयर डिफेंस प्रिपेयर्स प्लान भी बनाया इस

रिपोर्ट में सिग्नल इक्विपमेंट रेडर और

स्पेयर पार्ट्स की रिक्वायरमेंट्स

इंक्लूडेड थी गवर्नमेंट और इंडियन

एयरफोर्स को इस रिपोर्ट से बहुत मदद मिली

जेआरडी टाटा की इन्हीं कंट्रीब्यूशंस को

देखते हुए प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया ने उन्हें

इंडियन एयरफोर्स में ऑनर एयर कमोडोर की

पोस्टिंग भी दी थी 1991 तक जेआरडी टाटा ने

टा ग्रुप की कंपनीज का नंबर 84 तक पहुंचा

दिया था 24000 करोड़ का रेवेन्यू था और

270000 एंप्लॉयज थे लेकिन अब 87 की ऐज में

समय आ चुका था कि वो टाटा ग्रुप की कमांड

किसी और को सौंप दे इसीलिए जेआरडी टाटा ने

नए चेयरमैन के तौर पे टाटा फैमिली के एक

प्रॉमिसिफाई और ये नए चेयरमैन थे सर रतन

टाटा चेयरमैन बनने से करीब 30 साल पहले

1962 तक सर रतन टाटा यूएसए में

आर्किटेक्चर की पढ़ाई कर रहे थे कि तभी

उन्हें जेआरडी टाटा का लेटर आया जिसमें

उन्हें इंडिया आके बिजनेस ज्वाइन करने को

कहा गया था रतन टाटा ने इंडिया आके टाटा

स्टील को जवाइन किया और वहां एक नॉर्मल

वर्कर की तरह काम स्टार्ट किया उनके

डेडिकेशन और बिजनेस टैलेंट को देखकर

उन्हें एक के बाद एक बड़ी

रिस्पांसिबिलिटीज मिलने लगी चेयरमैन बनने

से पहले उन्होंने एंप्रेस मिल को लॉसेस से

निकालकर प्रॉफिटेबल बनाया था लको में एक

मेजर लेबर अनरेस्ट को सक्सेसफुली रिजॉल्व

किया था और टाटा की लको कंपनी जो रेडियो

और टेलीविजन वगैरह बनाती थी उसका रेवेन्यू

3 करोड़ से बढ़ाकर 200 करोड़ किया था जब

1991 में सर रतन टाटा चेयरमैन बने तो

उन्हें पता था कि टाटा ग्रुप बाहर से

देखने में तो अच्छा परफॉर्म कर रहा है

लेकिन रियलिटी में कई चीजों में वो पीछे

छूट रहा था उन्हें लगा कि हाई टेक्नोलॉजी

जैसे कंप्यूटिंग और एआई में ग्रुप काफी

पीछे है और ग्रुप ने बहुत समय से कुछ

यूनिक भी नहीं किया है वो टाटा ग्रुप के

थ्रू इंडिया के लिए कुछ रिवोल्यूशन करना

चाहते थे इसी माइंडसेट के साथ उन्होंने

देखा कि इंडिया के पास ऐसी कोई भी कार

नहीं थी जिसका डिजाइन से लेकर प्रोडक्शन

तक सब कुछ इंडिया में हुआ हो इसीलिए 1995

में रतन टाटा ने एक 100% इंडियन कार बनाने

की ठान ली एक ऐसी कार जो स्पेशियस

फ्यूचरिस्टिक अफोर्डेबल और हाई माइलेज

देती हो लेकिन एक प्रॉब्लम थी एक नया

मैन्युफैक्चरिंग प्लांट सेटअप करने की

कॉस्ट अराउंड 2 बिलियन डलर थी जो उस समय

एक बहुत बड़ा अमाउंट था इसीलिए टाटा

मोटर्स नेने जुगाड़ लगाया और ऑस्ट्रेलिया

में निसान का एक पुराना प्लांट 1/5 कॉस्ट

में खरीद लिया इस पूरे प्लांट को

डिस्मेंटल करके इंडिया लाया गया और पुणे

में रिबिल्ड किया गया रतन टाटा ने खुद कार

को डिजाइन करने में एक इंपॉर्टेंट रोल

निभाया और फाइनली 1998 में कार को लॉन्च

किया ये एक इंडियन कार थी इसीलिए इसका नाम

रखने के लिए इंडियन से इं लिया गया और कार

से का और इन्हें जोड़कर बनी इंडिका टा

इंडिका ऑटोमोबिल के बाद रतन टाटा ने

टेक्नोलॉजी पर फोकस किया उन्होंने देखा कि

टीसीएस का फोकस इंडियन कंपनीज को

एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विसेस जैसे डाटा

एंट्री और बुक कीपिंग देने में था जो बहुत

ही बेसिक लेवल का काम था इसीलिए रतन टाटा

ने टीसीएस का फोकस एडमिनिस्ट्रेटिव

सर्विसेस से शिफ्ट करके सॉफ्टवेयर

सर्विसेस पे ले आया जिसके बाद टीसीएस ने

इंडिया की और इवन वर्ल्ड की बिगेस्ट

ऑर्गेनाइजेशंस के लिए कस्टमाइज्ड

सॉफ्टवेयर्स बनाना चालू कर दिए रतन टाटा

ने टीसीएस का आईपीओ भी लाया जिससे कंपनी

को एक्सपेंड करने ने के लिए फंडिंग मिली

और इन्हीं स्टेप्स से आज भी टीसीएस इंडिया

की बिगेस्ट आईटी कंपनी है टीसीएस की

सक्सेस के बाद सर रतन टाटा ने वापस टाटा

मोटर्स पे फोकस किया उन्होंने देखा कि

इंडिया की मेजॉरिटी मिडिल क्लास पॉपुलेशन

एक कार अफोर्ड नहीं कर सकती इसीलिए पूरी

फैमिली को मजबूरी में एक स्कूटर में कंजे

होके जाना पड़ता है जो बहुत अनकंफर्ट बल

और अनसेफ था सर रतन टाटा का ड्रीम था

इंडियन मिडिल क्लास को एक स्कूटर से कार

में ट्रांजिशन करवाना इसीलिए उन्होंने

अनाउंस कर दिया कि वो एक ऐसी कार लॉन्च

करें जिसका प्राइस केवल ₹1 लाख होगा 2009

में अपने प्रॉमिस को रखते हुए उन्होंने 1

लाख के प्राइस पॉइंट पे लॉन्च की टाटा नो

लेकिन अनफॉर्चूनेटली न एक फेलियर साबित

हुई n का सबसे बड़ा एडवांटेज था उसका

सस्ता प्राइस पर यही उसका सबसे बड़ा

डिसएडवांटेज बन गया इंडिया में लोग कार को

एक स्टेटस सिंबल की तरह देखते हैं जिसके

पास एक कार होती है उसे सक्सेसफुल माना

जाता है लेकिन n के सस्ते प्राइस और उसके

डिजाइन के कारण लोगों ने उसे वर्ल्ड्स

चीपेस्ट कार मैच बॉक्स और इवन कवर्ड ऑटो

रिक्शा की तरह ब्रांड कर दिया जहां दूसरे

कार ओनर्स अपनी कार के कारण प्राउड फील

करते थे वहीं नो के ओनर्स अपनी कार के

कारण एंबैरेस्ड फील करते थे और इसीलिए नो

एक फेलियर साबित हुई लेकिन टा मोट्स ने इस

फेलियर से कंज्यूमर बिहेवियर के बारे में

बहुत कुछ सीखा जो आज उनकी लाइनअप में देखा

भी जा सकता है आज टा मोट्स टा ग्रुप की

सबसे ज्यादा रेवेन्यू कमाने वाली कंपनी बन

चुकी है फाइनली सर रतन टाटा डीप चाहते थे

कि इंडिया की कंपनीज को केवल इंडिया नहीं

बल्कि पूरे वर्ल्ड में बि बिजनेस करना

चाहिए और इसीलिए फॉरेन मार्केट्स में

एक्सपेंड करने के लिए उन्होंने एक के बाद

एक फॉरेन ब्रांड्स को एक्वायर करना चालू

कर दिया जैसे टा मोटर्स को ग्लोबल लग्जरी

मार्केट में एक्सपेंड करने के लिए

उन्होंने जकर और लैंड रोवर को एक्वायर कर

लिया ग्लोबल टी और कॉफी मार्केट में

एक्सपेंड करने के लिए ब्रिटिश ब्रांड

टेटली और यूएस ब्रांड 8 ओ क्लॉक कॉफी को

एक्वायर कर लिया सिमिलरली टा की हर मेजर

कंपनी जैसे टा स्टील टीसीएस टा केमिकल्स

और आईसीएल ने भी एक्विजिशंस किए और आज

इन्हीं डिसीजंस के कारण टा ग्रुप का आधे

से ज्यादा रेवेन्यू इंडिया के बाहर से आता

है सर रतन टाटा की लीडरशिप में टाटा ग्रुप

ने जो अचीव किया उसकी लिस्ट बहुत लंबी है

चाहे वो टाइटन द्वारा वर्ल्ड की स्लिमेस्ट

वॉच बनाना हो टीसीएस का वर्ल्ड का वन ऑफ द

मोस्ट पावरफुल सुपर कंप्यूटर बनाना हो या

फिर टा स्काई को लॉन्च करके टेलीविजन

मार्केट को डिसर पट करना हो ऑलमोस्ट हर

एरिया में टाटा ग्रुप ने सक्सेस हासिल की

सर रतन टाटा का कहना है कि अगर तेज चलना

है तो अकेले चलो लेकिन अगर दूर तक चलना है

तो सबको साथ लेके चलो टाटा ग्रुप ने हमेशा

इसी फिलॉसफी के साथ बिजनेस किया है एक तरफ

बड़ी-बड़ी कंपनीज बनाई है तो वहीं दूसरी

तरफ स्कूल्स कॉलेजेस और हॉस्पिटल्स भी

बनाए हैं टाटा ग्रुप हमेशा अपने

इन्वेस्टर्स अपने एंप्लॉयज अपने कस्टमर्स

और अल्टीमेटली अपने देश को साथ लेकर चला

है और इसीलिए आज उन्हें जितनी भी सक्सेस

मिली है

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